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भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की फांस बन गए है शिवराज

क्या मजबूरी है कि मोदी और शाह के ना चाहते हुए भी भारतीय जनता पार्टी शिवराज को ही अपना मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने को मजबूर है? जबकि 18 साल के शिवराज के राज में 250 से ज्यादा घोटाले हुए है और मानव सूचकांक में भी सबसे नीचे रहा है मध्यप्रदेश।

हिमांशु शर्मा

देश में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव है। जिसमें से दो राज्यों में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार वर्तमान में है। बात अगर मध्य प्रदेश की हो तो मध्य प्रदेश में भी 2018 में कांग्रेस की सरकार बनाने में कमलनाथ कामयाब हुए थे। लेकिन सिंधिया के गद्दारी करने के बाद भारतीय जनता पार्टी के द्वारा 15 महीने में ही कांग्रेस की सरकार को गिराकर जनता पर उपचुनाव थोपने

का काम किया गया था। यह जनादेश के अपमान और लोकतंत्र के अपहरण की भी घटना मानी जानी चाहिए। मध्य प्रदेश के चुनावी और राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहले नहीं देखने को मिला था कि पूर्ण बहुमत की सरकार को खरीद-फरोख करके गिराया गया हो, तब ज़ब देश और प्रदेश में कोविड महामारी फैल रही थी और लोग अपने अपने घर की ओर पैदल चलने को मजबूर थे वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश में अपनी सरकार बनाने के लिए विधायकों की खरीद-फ़रोख में व्यस्त थी। उस समय राजनैतिक गलियारों में चर्चा थी कि शिवराज सिंह चौहान अब मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे, फिर भी शिवराज सिंह ने सभी को चौंकाते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। देखा जाए तो शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के अभी तक के सबसे ज्यादा समय के मुख्यमंत्री हैं जोकि लगातार इस पद बने हुए है। शिवराज के कार्यकाल को गौर से देखा जाए तो पता चलता है कि पिछले 18 साल में वह मध्य प्रदेश में कोई भी ऐसा विशेष कार्य जनता के हित में नहीं कर पाए हैं जिसको उनकी राजनीति या सरकार का सबसे ठोस और मजबूत आधार माना जाए। जबकि खुद को जनता का मामा कहने वाले शिवराज के कार्यकाल में 250 से अधिक घोटाले हुए है और मानव सूचकांक की रिपोर्ट में मध्यप्रदेश का स्थान नीचे रहा है।

शिवराज की लंका में घोटालों का डंका

मध्य प्रदेश मैं 18 साल की शिवराज सिंह चौहान और भारतीय जनता पार्टी की सरकार में पोषण आहार घोटाला तब हुआ जब पूरे देश में कोविड कर्फ्यू लगा था स्कूल बंद थे। शिवराज सरकार ने 1600 करोड़ का कोरोना पोषण आहार और 1400 करोड़ का कोरोना मध्यान्ह का भोजन कागजों पर बाँटने का कार्य किया। कैग के महालेखाकार (AG) की रिपोर्ट में लगभग 12000 करोड़ का मिड-डे-मील घोटाला भी सामने आया रिपोर्ट में कहा गया कि बच्चों की स्कूलों में उपस्थिति पर 26% ही थी लेकिन सरकार ने 86% से 95% बच्चों को खाना खिलाने का काम किया। सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रदेश के सरकारी स्कूलों में तीन लाख रुपए का काम होना था लेकिन एक लाख का भी काम नहीं हुआ। इस तरह से  जनता के 2000 करोड़ रूपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। बात अगर व्यापम की हो तो इस घोटाले की मार प्रदेश के सभी युवाओं पर 2004 से पड़ रही है।

ऐसा आरोप है कि पीएमटी और डी.ई.टी. परीक्षा की भर्ती में 20 से 50 लाख में सीटें बेची गई। प्रदेश की बिजली, पानी और सड़कों की बात की जाए तो 94 हजार करोड़ का बिजली घोटाला, 25000 करोड़ का आरटीओ घोटाला, 50000 करोड़ का चेक पोस्ट घोटाला, 10000 करोड़ को जल जीवन मिशन घोटाला, 15000 करोड़ का टोल घोटाला इन 18 सालों में प्रदेश को झेलना पड़ा है। कांग्रेस ने इन सभी घोटालों के लिए शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व को जिम्मेदार माना है कांग्रेस का कहना है कि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की नदी शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री आवास एक श्यामला हिल्स से निकलती है।

शिवराज सिंह चौहान और भारतीय जनता पार्टी जोकि धार्मिक राजनीति करने के लिए देश में जाने जाते है। फिर भी भाजपा के कार्यकाल में ही महाकाल और मां नर्मदा के नाम पर हुए लगभग 3 हजार करोड़ के घोटालें सामने आये, महाकाल लोक निर्माण के समय भगवान की मूर्ति निर्माण और महाकाल लोक में बनी सप्त ऋषियों की मूर्ति निर्माण में भी घोटाला हुआ। दूसरी और नर्मदा परिक्रमा क्षेत्र में चार करोड़ पेड़ पौधे लगाने के नाम पर लगभग तीन हजार करोड़ का घोटाला हुआ।
बात अगर आदिवासियों की की जाए तो आदिवासियों की जमीन के नाम पर लगभग 50 हजार करोड रुपए के घोटाले की बात कांग्रेस अपने आरोप पत्र में कह रही है। कांग्रेस का कहना है की सारे नियमों और कानूनों की धज्जियां उड़ाकर सिर्फ एक लाख रूपये में हजारों एकड़ जमीन बेचने की अनुमति दी गई। आदिवासियों की जमीन बेचने के लिए 50 लाख तक की रिश्वत ली गई। पिछले 8 वर्षों में लगभग 2000 करोड़ से अधिक की राशि प्राकृतिक आपदा बताकर फर्जी लाभार्थियों को बांट दी गई।
पिछले 18 सालों की बात करते हुए जब कमलनाथ अपनी जनसभाओं में शिवराज सिंह चौहान से सवाल करते हैं कि उन्होंने 18 साल में क्या दिया? तो स्वयं शिवराज सिंह चौहान भी जवाब देने से बचते हुए दिखाई देते हैं और अपने भाषणों में मामा,भाई-बहन और यहां-वहां की बात करके नहीं आरोप लगाने लगते  हैं। यही कारण है कि पिछले 18 सालों के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आज मुखर होकर अपनी उपलब्धियों पर बात करते नहीं दिखाई देते हैं खुले मंचों पर।

भाजपा के लिए मज़बूरी का नाम बन गए शिवराज

भारतीय जनता पार्टी के लिए शिवराज सिंह चौहान का नाम लेना कमजोरी है या विकल्पहीनता यह कहना स्पष्ट नहीं है। पर एक बात स्पष्ट है कि शिवराज सिंह चौहान भारतीय जनता पार्टी के लिए एक मजबूरी बन चुके हैं। 2018 में पूर्ण बहुमत की बनी कांग्रेस पार्टी की सरकार को गिराने के बाद जिस तरह की चर्चाएं थी कि शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे और उन्होंने चौंकाते हुए फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी उसके बाद से लगातार भारतीय जनता पार्टी में अंदरूनी कलह की बात समय समय पर सामने आती रही है। 2020 में सिंधिया के विद्रोह के बाद सरकार तो कांग्रेस की चली गई लेकिन सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में जाने के बाद अब लगता है कि वो आज मोदी और शाह के लिए एक बोझ बन गए हैं। भारतीय जनता पार्टी 2023 के विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा परेशन केवल मध्य प्रदेश में है, इसका सबसे बड़ा कारण कमलनाथ की रणनीति है। इससे पहले हुए नगर निगम के चुनावों में कमलनाथ ने अपनी रणनीति और कार्यकुशलता का ऐसा परिचय दिया था कि तबसे लेकर अभी तक भाजपा को कोई भी ठोस रास्ता नहीं सूझ रहा है क्योंकि जैसे ही कोई नई रणनीति भाजपा के द्वारा बनाई जाती है उसके बदले में सामने से अधिक आक्रमक रूप से ठोस रणनीति कमलनाथ लाकर भाजपा के सामने रख देते है।

पहली लिस्ट में वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम ना आना दिल्ली का इशारा था कि शिवराज सिंह चौहान अब मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं होंगे लेकिन चौथी लिस्ट आते-आते शिवराज सिंह चौहान ने दिल्ली को चुनौती पेश कर दी और दिल्ली को मजबूरन टिकट की चौथी लिस्ट में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम देना पड़ा। हाईकमान और दिल्ली में बैठे मोदी-शाह की चुनौती को स्वीकार करते हुए अभी भी भारतीय जनता पार्टी का एकमात्र चेहरा शिवराज सिंह चौहान स्वयं को बनाए हुए हैं। देखा जाए तो मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बड़ी ही असमंजस में है क्योंकि अगर वह मुख्यमंत्री का चेहरा शिवराज को नहीं बनाते हैं तो उन्हें पता है कि हार का सामना करना है और अगर बनाते है तबभी हार निश्चित ही है कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का हाल ”एक अनार सौ बीमार” वाला हो चुका है। मालूम होता है कि कमलनाथ की रणनीति भाजपा के सभी चालों पर भारी पड़ती हुई दिखाई दे रही है। भाजपा इस चुनाव में अंतरकलह और अपनी ही पार्टी दूसरे बड़े और दिल्ली से भेजे गए चुनाव लड़ने वाले नेताओं को हराने में ही व्यस्त रहेगी। दूसरी ओर कमलनाथ की रणनीति और कांग्रेस के लिए जनता का स्पष्ट समर्थन कांग्रेस की पूर्णबहुमत की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएगी।

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