# Tags
#ज्योतिष-अध्यात्म #मध्य प्रदेश

सच्चाई, ईमानदारी और हक पर चलने की दुआ के साथ इज्तिमा का समापन

नईम कुरैशी

भोपाल।ऐ अल्लाह  सारी दुनिया को इल्म के नूर से रौशन कर दे, सारी क़ायनात में अमन, सुकून, भाईचारे की हवाएँ चला दे। इस शहर, सूबे, मुल्क को क़ामयाबी, तरक्की की बुलंदियों से मालामाल कर दे। ऐ अल्लाह दुनिया के हर इंसान को सच्चाई, ईमानदारी और हक पर चलने की आसानी फरमा दे। लाखों के मजमे के बीच तब्लीक़ जमात के प्रमुख मौलाना साअद साहब ने जब इज्तिमागाह में यह दुआ करवाई तो हर तरफ से उठने वाली आमीन की सदाओं ने माहौल को रुहानियत से भर दिया।

आलमी तब्लीगी इज्तिमा के आखिरी दिन सोमवार को सुबह करीब 10 बजे तक मौलाना साअद साहब का बयान चलता रहा। इस दौरान तब्लीग के छह बिन्दुओं को तफ्सील से समझाते हुए उन्होंने दुनियाभर के लिए रवाना होने वाली जमातों को तालीम दी। इस दौरान उन्होंने दुआ को अल्लाह और बंदे के बीच स्थापित होने वाला सीधा कनेक्शन करार दिया। मौलाना ने कहा कि दुआ सबसे बड़ा हथियार, इससे हर मुश्किल के खिलाफ जंग लड़ी जा सकती है। मज़लूम के लिए दुआ मांगने का सिलसिला खत्म हो रहा है, जिससे इनकी मकबूलियत में मुश्किलें आने लगी हैं। उन्होंने कहा कि इज्तिमाई दुआ पर फरिश्ते आमीन कहते हैं। हर दुआ पर आमीन की मोहर लगना ज़रूरी है। उन्होंने ये भी समझाया कि दुआ कुबूल होने के लिए ज़रूरी है कि इंसान हराम खाना छोड़ दें। सुबह करीब 10.10 बजे साअद साहब ने दुआ शुरु की, जो करीब 27 मिनट से ज्यादा चली। दुआ के दौरान पूरे मजमे में पिन ड्राप साइलेन्ट के हालात बन गए थे। इस समय यहाँ दूर-दूर तक सिर्फ साअद साहब की आवाज गूंज रही थी और बीच में अकीदतमंदों की आमीन की आवाजें आ रही थीं।

*दुआ से पहले हुआ बयान*

दुआ ए ख़ास से पहले मजमे को ख़िताब करते हुए मौलाना साअद साहब ने कहा कि तब्लीग का काम हमारे आखिरी पैगंबर हज़रत मोहम्मद (सअव) के पसंदीदा कामों में से एक है। उन्होंने दीन की खातिर बेहद तकलीफ और परेशानियां उठाईं हैं। उन्होंने कहा कि आज इंसान ने अपनी ज़रुरत को दुनिया के आसपास महदूद कर लिया है। जबकि अपनी असल जिंदगी आखिरत के लिए तैयारी करने की उसे फिक्र नहीं है। जमातों में निकलकर तब्लीग के जरिए लोगों को असल जिंदगी की मेहनत के लिए ही बताया जा रहा है।

*2 हज़ार जमातें रवाना हुईं*

आलमी तब्लीगी इज्तिमा के आखिरी दिन इज्तिमागाह से क़रीब 2 हजार जमातें रवाना हुईं। मौलाना साअद साहब ने मुसाफा कर और दुआओं के साथ इन्हें रवाना किया। यह जमातें देशभर और दुनिया के कोने-कोने में जाकर तब्लीग का काम करेंगी। इस बीच करीब 14 जमातें विदेशों के लिए भी रवाना हुई हैं।

*इंतज़ाम फैल नेटवर्क हुआ ध्वस्त*

लाखों लोगों की मौजूदगी ने इज्तिमागाह और आसपास के क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क को बुरी तरह प्रभावित किया। शनिवार से बन रही परेशानी ने सोमवार आते आते मोबाइल फोन को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। हालांकि बीएसएनएल और निजी कंपनियों ने यहां विशेष इंतजाम कर नेटवर्क व्यवस्थित रखने की कवायद की थी, लेकिन यह इंतजाम नाकाफी साबित हुए।

*सबकी ख़िदमत में हाज़िर रहे भोपाली*

चार दिन के इज्तिमा के दौरान प्रबंधन, वालेंटीयर्स और सरकारी विभागों के अलावा आसपास के रहवासियों और शहर की सामाजिक संस्थाओं ने जमातियों को सहूलियत के लिए कई काम किए। यूं कहें कि सबकी ख़िदमत में हाज़िर रहे भोपाली। इनमें रास्ते में पानी, चाय, नाश्ते के फ्री इंतजाम से लेकर लोगों को इज्तिमागाह तक फ्री आवाजाही के साधन मुहैया कराने वाले भी शामिल थे। एक स्थानीय मैकेनिक ने इज्तिमागाह के रास्ते में खराब होने वाले वाहनों के मुफ्त रिपेयरिंग का ऐलान कर इसकी सूचना सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाई। सर्दी से बचाव के साधन नही लाने वाले लोगों को मुफ्त कंबल वितरित करने के काम भी इज्तिमा अवधि में किए गए थे।

*हर बार दिखता है हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा*

दुआ के बाद घरों के लिए रवाना हुए लोगों को रास्ते की परेशानियों से बचाने के लिए इस्लाम नगर, सेमरा सैयद, गोलखेडी, लाम्बाखेडा आदि ग्रामों के बाशिंदों ने व्यवस्थाएं की थीं। पीने के पानी, चाय आदि के अलावा ये जमातियो को व्यवस्थित यातायात के इंतजाम भी संभाल रहे थे। गौरतलब है कि इन ग्रामीणों में अधिकांश हिन्दू समुदाय के लोग हैं। आखिरी दिन की व्यवस्थाओं के अलावा हिन्दू समाज के लोगों ने इज्तिमा की पार्किंग के लिए भी अपने खेतों में जगह उपलब्ध कराई हैं। इसके अलावा इज्तिमागाह पर तैयार किए गए अस्थाई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को तैयार करने के लिए बिछाई गई लाइन के लिए भी कई हिंदू भाइयों ने अपने खेतों से पाइप लाइन गुजारने की जगह और पानी के इंतजाम के लिए अपने ट्यूबवेल भी उपलब्ध कराए हैं।

*15 हजार से ज्यादा लोगों ने गटका यूनानी काढ़ा*

कोरोना काल बहुत पीछे छूट गया है, लेकिन इसके भावी खतरों को लेकर एहतियात का दौर अब भी जारी है। इसी धारणा को आलमी तबलीगी इज्तिमा में भी अपनाया गया। यही वजह है कि यहां इज्तिमा के चार दिन की अवधि में करीब 15 हजार से ज्यादा लोगों ने यूनानी काढ़ा पिया। इसके अलावा इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवाओं के लिए भी मेडिकल कैंप पर लंबी कतारें लगी रहीं। इधर सरकारी और निजी अस्पतालों द्वारा तैयार किए गए दर्जन भर से ज्यादा कैंप में भी लोग सर्दी, खांसी, बुखार आदि की समस्याएं लेकर पहुंचते रहे।  जयप्रकाश अस्पताल द्वारा संचालित शिविर कई बड़ी सुविधाओं के साथ मौजूद रहा। 10 बेड के इस शिविर में ऑक्सीजन, नियुमोलाइजर, ईसीजी से लेकर बीपी और शुगर चेक करने के इंतजाम किए गए थे। 108 एंबुलेंस सेवा के साथ यहां हर समय 4 डॉक्टर मौजूद थे।

*सहाफ़ियों ने भी की ख़िदमत*

4 दिनी आलमी तबलीगी इज्तिमा आयोजन में जहां इज्तिमागाह एक बड़ी इबादतगाह में तब्दील रहा, बयान और तकरीर का दौर चला, देश दुनिया से आए लोग इन रूहानी महफिलों से फैज हासिल करते रहे, वहीं बड़ी तादाद में लोग इस मौके का लाभ लेने से महरूम भी रह गए। अपनी व्यस्तताओं और मजबूरियों के बीच इज्तिमा में शिरकत न कर पाने के मलाल को दूर करने के लिए मीडिया ने बीड़ा उठाया। इज्तिमागाह पर होने वाली पल पल की जानकारी, सरकारी और निजी इंतजाम, शहर में 4 दिनों रहे। यहां आने से महरूम रह गए लोगों के मन की बातों को मंजर ए आम पर पहुंचाने में सहाफ़ियों ने जी तोड़ मेहनत की। राजधानी भोपाल समेत प्रदेश और देश के बड़े अखबारों, टीवी चैनलों, न्यूज पोर्टल, यूट्यूब चैनल और यहां तक के सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म से इज्तिमा कवरेज को विस्तार से स्पेस दिया गया। कई मीडियाकर्मियों ने पूरे समय इज्तिमागाह पर रुककर और कई ने मैदानी जिम्मेदारी सम्हालकर इस काम को अंजाम दिया।

*100 बरस का हुआ इज्तिमा*

करीब 100 साल पहले भारत में इज्तिमा का वर्तमान रूप एक घटना के बाद सामने आया। जब नवंबर 1922 में तुर्की में मुस्तफ़ा कमालपाशा ने सुल्तान ख़लीफ़ा महमद षष्ठ को हटाकर अब्दुल मजीद आफ़ंदी को खलीफा बनाया, उसके सारे राजनीतिक अधिकार हड़प लिए, तब जिन्ना और गाँधी जी की ख़िलाफ़त कमेटी ने 1924 में विरोध प्रदर्शन के लिए एक प्रतिनिधिमंडल तुर्की भेजा। राष्ट्रवादी मुस्तफ़ा कमाल ने उसकी सर्वथा उपेक्षा की और जलन और द्वेष में आकर 3 मार्च 1924 को उन्होंने ख़लीफ़ा का पद ख़त्म कर ख़िलाफ़त का हमेशा हमेशा के लिए अंत कर दिया। मुसलमानों का संगठन बिखर गया। दूरदराज के गांव और देहात में रहने वाले कम पढ़े-लिखे मुसलमानों को अपने धर्म में बनाए रखने और उन्हें धार्मिक तौर पर शिक्षित करने के लिए इस आन्दोलन की शुरुआत की गई, जिसे आजकल लोग तब्लीगी जमात कहते हैं। इस आंदोलन का असर हुआ। मुसलमानों ने हिंदुस्तान में जगह -जगह इकठ्ठा होकर इज्तिमा किया। नमाज के साथ दुआ और दीन की बातें सिखाईं। धीरे-धीरे लोगों को इस्लामिक जानकारी मिलने लगीं। अनपढ़ मुसलमानों ने अल्लाह को पहचाना। इसका फायदा ये हुआ कि मुसलमानों ने अपने धर्म को नही छोड़ा।

*दुनिया के 213 देशों  इज्तिमा*

इज्तिमा आयोजन के 25 साल बाद वर्ष 1947 में देश का बंटवारा हो गया। हिंदुस्तान के तीन टुकड़े हो गए। पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश जैसे नए देश बन गए। इसलिए दुनिया के सबसे बड़े 3 इज्तिमे इन 3 मुल्कों में होते हैं। अब ये आयोजन दुनियाभर के 213 देशों तक फैल चुका है। हिंदुस्तान के भोपाल शहर के अलावा ये उत्तरप्रदेश
के बुलन्दशहर में भी आयोजित होता है। जहां लोग इकट्ठा होकर नमाज पढ़ते है, दीन की बातें करते हैं फिर दुआ करते हैं।

*भोपाल में 1947 से आयोजन*

मप्र की राजधानी भोपाल में सन 1947 में मस्जिद शकूर खां में इज्तिमा आयोजित किया गया। महज 13 लोगों की मौजूदगी वाले इस आयोजन को अगले साल ही नया ठिकाना मिल गया, जब ताजुल मसजिद बनकर तैयार हो गई। 1948 से शुरू हुआ ये सिलसिला वर्ष 2003 तक निरंतर जारी रहा। इस दौरान यहां आने वाले जमातियों की तादाद साल दर साल बढ़ती गई और शहर के बीच होने वाला ये आयोजन शहर की यातायात व्यवस्था को प्रभावित करने लगा। जिसके बाद इज्तिमा का आयोजन ईंटखेड़ी शिफ्ट कर दिया गया। सैकड़ों एकड़ की एहतियात वाली जगह और शहर के विभिन्न दिशाओं से आने वाली जमातों की आसानी के चलते ये जगह अब लोगों को रास आ गई है। इज्तिमा में शामिल होने वालों की संख्या अब 10 लाख से ज़्यादा हो चुकी है।

*झलकियां:-*

● दुआ ए ख़ास में शामिल होने के लिए शहर की दौड़ ईंट खेड़ी स्थित इज्तिमागाह की तरफ लग गई। बड़ी तादाद में लोग रविवार रात से ही पहुंच गए थे। जबकि हज़ारों लोग सुबह फजिर की नमाज के बाद वहां पहुंचे।

● सुबह से निकले लोगों के हुजूम के चलते आरिफ नगर पर बने नए पुल पर जाम जैसे हालात बन गए। इसके संकरेपन की वजह से यहां मुश्किलें आईं।

● दुआ में शामिल होने वाले लोगों की तादाद इतनी थी कि सुबह से ही अधिकांश पार्किंग फुल हो गईं। जिसके बाद लोगों को करीब 1 किलो मीटर पहले 28 नंबर पार्किंग पर रोक दिया गया। यहां वाहन पार्क कर लोगों को पैदल चलकर आयोजन स्थल तक जाना पड़ा।

● अधिकांश लोगों ने आखिरी माइक के पास अड्डा जमा लिया। यहीं से दुआ में शिरकत कर वे वापस हो गए।

● इज्तिमागाह पर प्रोफेशनल डॉक्टर, इंजीनियर, एमबीए, कारोबारी, स्टूडेंट्स के लिए अलग से बयान हुआ। जिसमें अपने काम को मुनाफे की बजाए लोगों के फायदे के लिए इस्तेमाल करने की ताकीद की गई।

● इज्तिमा की शुरुआत पर शासन की ओर से आदेश जारी कर आसपास के शहरों से आने वाले वाहनों के लिए टोल फ्री किया था। लेकिन अधिकांश टोल पर आदेश को नहीं माना, जिससे कई जगह विवाद के हालात भी बने।

● इज्तिमा से वापस लौटने वाली जमातों ने बड़ी तादाद में विशेष काउंटर से रिजर्व और अन रिजर्व टिकट बुक कराए। इसका आंकड़ा लाखों में बताया जा रहा है। यात्रियों की सुविधा के लिए रेलवे ने दिल्ली, मुंबई, उप्र के कई शहरों सहित साउथ की कुछ ट्रेनों में अतिरिक्त कोच लगाए।

● इज्तिमागाह पर लोगों की सहूलियत के लिए बड़ी संख्या में मोबाइल चार्जर पॉइंट्स भी उपलब्ध कराए गए थे। फायर ऑफिसर साजिद खांन ने ये व्यवस्था अपने कैंप में बड़ा चार्जिंग प्वाइंट लगाकर की थी। इस काउंटर पर पंचर सुधारने की व्यवस्था भी निशुल्क रखी गई थी।

● लाखों लोगों के मजमे तक बात पहुंचाने के लिए लगाए गए लाउड स्पीकर के संस्थापन में खास मैनेजमेंट का इस्तेमाल किया गया था। जिसके चलते इज्तिमागाह में आवाज बुलंद और स्पष्ट रही, लेकिन दूर तक जाकर इसने न तो लोगों को डिस्टर्ब किया और न ही वायु प्रदूषण के हालात बनाए।

● दुआ के बाद लाखों लोगों की व्यवस्थित रवानगी के लिए पहले पैदल यात्रियों को रवाना किया गया। इसके कुछ देर बाद दो पहिया और बाद में चार पहिया वाहनों के अलावा अंत में बस, ट्रक और अन्य भारी वाहनों को रवाना किया गया।

● इज्तिमागाह से निकला वाहनों का हुजूम धीरे धीरे भोपाल शहर में पहुंचा, जिसकी वजह से देर तक कई हिस्सों में अव्यवस्थित यातायात से लोग परेशान हुए।

● इज्तिमा में शामिल होने आए अधिकांश जमातियों ने दुआ से निवृत होकर ताजुल मसजिद का रुख किया। कोई यहां घूमने पहुंचा था तो किसी को गर्म कपड़ों के बाजार से खरीदी की। इस स्थिति के चलते रॉयल मार्केट, ईमामी गेट, पीर गेट, नूर महल आदि क्षेत्रों में लोगों की चहल पहल बढ़ गई।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share via
Send this to a friend