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लोकतंत्र की आकांक्षाएं धूल धूसरित हो रही : डॉ. कुसुम

विधानसभा चुनावों में वायदों की अपसंस्कृति

अशोक लोढ़ा

जयपुर। मुक्त मंच की 75वीं मासिक संगोष्ठी विधानसभा चुनावों में वादों की अपसंस्कृति विषय पर हुई। परम विदूषी डॉ. पुष्पलता गर्ग के सान्निध्य और प्रतिष्ठित भाषाविद् डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसुम की अध्यक्षता में हुई इस गोष्ठी में आईएएस (रि.) अरूण कुमार ओझा मुख्य अतिथि थे और शब्द संसार के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने संयोजन किया।
डॉ. कुसुम ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि आज राजनैतिक दल मतदाताओं को प्रलोभन देकर वोट हासिल करते हैं जो अनुचूति है। वर्तमान में लोकतंत्र की सभी आशाएं-अपेक्षाएं धूल धूसरित हो रही है ऐसे में मतदाता जागरूक नहीं होगा तो लोकतंत्र फलीभूत नही होगा।
मुख्य अतिथि आईएएस (रि.) अरूण कुमार ओझा ने कहाकि वृहद समाज के लिए बजट की अधिकाधिक राशि खर्च की जानी चाहिए परन्तु ऐसा नहीं होता। सरकारों के लिए यह प्राथमिकता ही नहीं है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
इंजीनियर दामोदर प्रसाद चिरानिया के कहा कि हमारे राजनीतिक दल सदाचार और नैतिकता से कोसों दूर हैं। राजनैतिक घरानों के गुप्त धन पर आश्रित हैं। वादे जन अपेक्षाओं के अनुरूप होने चाहिए।
आईएएस (रि.) ए.आर. पठान ने कहा कि अमीरी-गरीबी का अन्तर बढ़ता जा रहा है। पिछड़ों की कोई सुनवाई नहीं होती। बडे़ घरानों के कर्जे माफ कर दिए जाते हैं। संगठित वर्ग अपने संख्या बल पर लाभ उठा लेते हैं और असंगठित वर्गों की उपेक्षा की जाती है। अमीरों पर वैल्थ टैक्स लगाकर गरीबों को ऊंचा उठाने के लिए साधन मुहैया करवाए जाने चाहिए।
प्रो. राजेन्द्र प्रसाद गर्ग ने कहा कि हम तिहरी गुलामी का बोझा ढो रहे हैं इसलिए कुंठित हैं और आज भी ‘फ्रीबीज‘ की ही गं्रथी से देखते हैं जबकि सामाजिक सरोकार सर्वोपरि होने चाहिए।
डॉ. सुभाषचन्द्र गुप्त ने कहा कि राजनेता जनता को भरमाने के लिए पहले तो वायदे करते हैं और उनका लाभ उठाकर सत्ता में आने के बाद जुमले करार दे देते हैं। सामान्य सुविधाओं के लिए भी आमजन के कामों में तरह-तरह के अडंगे लगाए जाते हैं जबकि सुविधाएं लेने हेतु नियमों को सरल बनाया जाना चाहिए।
वांग्मय प्रकाशन के राजेश अग्रवाल ने कहा कि हमारे यहां तो ऋण लेकर घी पीने की परम्परा रही है और सरकारें भी यही कर रही है। गरीब तबके की पीड़ा को लेकर किसी को कोई चिंता नहीं है।
पूर्व बैंकर इन्द्र भंसाली ने कहा कि सत्ता में बैठे नेता भव्य और दिव्य जीवन जीते हैं और करों के रूप में जनता की गाढ़ी कमाई पर सभी सुविधाएं भोगते हैं। दूसरी ओर जनता को मुफ्त सुविधाएं प्रदान कर राजकोष पर भार डालते हैं। इस हेतु जनता का जागरूक होना नितान्त आवश्यक है।
प्रखर पत्रकार एवं विचारक सुधांशु मिश्र ने कहा कि सरकारें कर्जा चुकाने के लिए कर्ज ले रही हैं। हम जो चीजें स्वदेश में बना सकते हैं उनका भी अन्य राष्ट्रों से आयात करते हैं। हमारी संवैधानिक संस्थाएं दबाव में है जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
वरिष्ठ साहित्यकार फारूक आफरीदी ने कहा कि अपने अधिकारों के लिए लोकतंत्र में जनमत को जागृत किए जाने की जरूरत है। स्वयंसेवी संस्थाओं को यह जिम्मेदारी उठानी होगी। शिक्षा और चिकित्सा सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
गोष्ठी के संयोजक श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि राजनीति को धर्म से जोड़ा जा रहा है और साधु-संतों को प्रत्याशी बनाया जा रहा है। धर्म के आधार पर मतदाताओं को भ्रमित और प्रभावित किया जा रहा है। मतदाताओं को प्रलोभन देना लोकतंत्र की भावना के विपरीत है।
यशवंत कोठारी, आरडी अग्रवाल, ललित अकिंचन अरुण ठाकर, डॉ. जीके श्रीवास्तव, पत्रकार सुश्री निर्मला राव, सुमन ने भी विचार व्यक्त किए। आईएएस विष्णुलाल शर्मा ने सभी का आभार ज्ञापित किया।

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