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आंवला नवमी: व्रत, पूजा, तर्पण और अन्नादिका दान करने से होती है अनन्त फल की प्राप्ति

डॉ0_विजयशंकर मिश्र

कार्तिक मास के शुक्लपक्ष में जो नवमी आती है, उसे अक्षयनवमी,आँवला नवमी कहते हैं।

नारदपुराण के _अनुसार

कार्तिकेशुक्लनवमीयाऽक्षयासाप्रकीर्तता । #तस्यामश्वत्थमूलेवैतर्प्पणं_सम्यगाचरेत् ।। ११८-२३

देवानांऋषीणांपितॄणांचापिनारद । #स्वशाखोक्तैस्तथामंत्रैःसूर्यायार्घ्यं_ततोऽर्पयेत् ।। ११८-२४

ततोद्विजान्भोजयित्वामिष्टान्नेन_मुनीश्वर ।

स्वयंभुक्त्वाविहरेद्द्विजेभ्योदत्तदक्षिणः ।। ११८-२५

एवंयःकुरुतेभक्त्याजपदानं_द्विजार्चनम् ।

होमंसर्वमक्षय्यंभवेदितिविधेर्वयः ।। ११८-२६

कार्तिक मास के शुक्लपक्ष में जो नवमी आती है, उसे अक्षयनवमी कहते हैं। उस दिन पीपलवृक्ष की जड़ के समीप देवताओं, ऋषियों तथा पितरों का विधिपूर्वक तर्पण करें और सूर्यदेवता को अर्घ्य दे। तत्पश्च्यात ब्राह्मणों को मिष्ठान्न भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दे और स्वयं भोजन करे। इस प्रकार जो भक्तिपूर्वक अक्षय नवमी को जप, दान, ब्राह्मण पूजन और होम करता है, उसका वह सब कुछ अक्षय होता है, ऐसा ब्रह्माजी का कथन है।
कार्तिक शुक्ल नवमी को दिया हुआ दान अक्षय होता है अतः इसको अक्षयनवमी कहते हैं।
स्कन्दपुराण, नारदपुराण आदि सभी पुराणों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी युगादि तिथि है। इसमें किया हुआ दान और होम अक्षय जानना चाहिये । प्रत्येक युग में सौ वर्षों तक दान करने से जो फल होता है, वह युगादि-काल में एक दिन के दान से प्राप्त हो जाता है #एतश्चतस्रस्तिथयोयुगाद्यादत्तंहुतंचाक्षयमासुविद्यात् #युगेयुगेवर्षशतेनदानंयुगादिकालेदिवसेन #तत्फलम्॥”देवीपुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमीको व्रत, पूजा, तर्पण और अन्नादिका दान करनेसे अनन्त फल होता है।

कार्तिक शुक्ल नवमी को ‘धात्री नवमी’ (आँवला नवमी) और ‘कूष्माण्ड नवमी’ (पेठा नवमी अथवा सीताफल नवमी) भी कहते है। स्कन्दपुराण के अनुसार अक्षय नवमी को आंवला पूजन से स्त्री जाति के लिए अखंड सौभाग्य और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है।
आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को भी अति प्रिय है। अक्षय नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदे गिरती है और यदि इस पेड़ के नीचे व्यक्ति भोजन करता है तो भोजन में अमृत के अंश आ जाता है। जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होकर दीर्घायु बनता है। चरक संहिता के अनुसार अक्षय नवमी को आंवला खाने से महर्षि च्यवन को फिर से जवानी यानी नवयौवन प्राप्त हुआ था।
अक्षय नवमी को ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई। इसी कारण कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिये। मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को बीज युक्त कुम्हणा दान करने पर कुम्हड़े की बीज में जितने बीज होते हैं, उतने ही साल तक दानदाता को स्वर्ग में रहने की जगह मिलती है।यदि घर से बीमारी न निकल रही हो तो किसी धर्म स्थान में पके हुए कुष्मांड का दान करना चाहिए।
अक्षय नवमी को ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा करके क्रान्ति का शंखनाद किया था। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए लोग आज भी अक्षय नवमी पर असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत के लिए मथुरा वृन्दावन की परिक्रमा करते हैं।।

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