कांग्रेस का अंडर करंट रहा तो रामकिशोर शुक्ला दूसरे नंबर पर और यदि भाजपा का रुझान हुआ तो अंतर सिंह दरबार दूसरे नंबर पर होंगे
देखना दिलचस्प होगा कि दीदी की स्पष्ट जीत होती है या तकनीकी !
लोककांत महूकर
महू।इस बार महू विधानसभा क्षेत्र का चुनाव साहब यानी अंतर सिंह दरबार, दीदी यानी उषा ठाकुर और भैया जी यानी रामकिशोर शुक्ला के बीच रहा। पूरे विधानसभा क्षेत्र को कवर करने वाले कतिपय वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि जयस उम्मीदवार प्रदीप मावी ने भी आदिवासी पट्टी में अच्छी तादाद में वोट लिए। ऐसे लोगों का मानना है कि प्रदीप मावी को 20 से 25000 तक वोट मिल सकते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि जयस को मिलने वाले वोटों का 60 फ़ीसदी हिस्सा भाजपा का होगा। इसका कारण यह है कि महू के आदिवासी मतदाता परंपरागत रूप से भाजपा को मत देते आए हैं।
कांग्रेस सरकार बनाने के आंकड़े पर पहुंच रही है।
क्षेत्र की लगभग 24 आदिवासी पंचायतों में स्वर्गीय भेरूलाल जी पाटीदार ने जिस तरह संपर्क बनाया। उसका लाभ भाजपा को मिल रहा है। 1973 का उपचुनाव जीतने के बाद से ही स्वर्गीय पाटीदार जी का यह रूटीन रहा है कि वे सप्ताह में 2 दिन आदिवासी बेल्ट में अपनी बुलेट मोटरसाइकिल से जाते थे। स्वर्गीय पाटीदार जी ने कम से कम 30 वर्षों तक अपनी दिवाली आदिवासी मतदाताओं के साथ मनाई है। उन्हीं के परिश्रम और पुण्य कार्यों का फल है कि आज भी भाजपा को बैठे ठाले आदिवासी मत भरपल्ले मिल जाते हैं। बहरहाल, कल दोपहर तक परिणामों की स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। इसलिए अनुमान लगाने का मौका सिर्फ आज है.. सो नाचीज भी ट्राई कर रहा है। अपना मानना है कि अंतर सिंह दरबार, उषा ठाकुर और रामकिशोर शुक्ला के बीच 1,90,000 वोटों का बंटवारा होगा। इसमें उषा ठाकुर 80 से 85000 तक मत प्राप्त कर सकती हैं। शेष बचे 10,5000 या 1,10,000 मतों का बटवारा अंतर सिंह दरबार और रामकिशोर शुक्ला के बीच होगा। महू कांग्रेस का गढ़ रहा है। इस कारण से पार्टी के पास अपने कम से कम 50,000 परंपरागत मतदाता हैं। दूसरी और अंतर सिंह दरबार के प्रति सहानुभूति स्पष्ट रूप से देखी गई। उनके जैसा अभियान था और जनता का उन्हें जैसा सपोर्ट था यदि वह वोटों में तब्दील हुआ तो अंतर सिंह दरबार 70 हजार तक मत प्राप्त कर सकते हैं। यदि प्रदेश में कांग्रेस का अंडर करंट रहा यानी उसकी स्पष्ट बहुमत से सरकार बनती है तो फिर रामकिशोर शुक्ला दूसरे स्थान पर आ सकते हैं लेकिन यदि भाजपा बहुमत में आती है तो फिर कांग्रेस महू में तीसरे स्थान पर भी खिसक सकती है। दरअसल कांग्रेस के पास इस बार अच्छा मौका था। रामकिशोर शुक्ला ऐसे नेता हैं जिनका पूरे क्षेत्र में परिचय है। इसके बावजूद यह कहना पड़ेगा कि उनका मैनेजमेंट बिल्कुल भी प्रभावी नजर नहीं आया।
दीदी की जगह दीदी को लाने की रणनीति !
उषा दीदी का प्रबंध भी बिखरा बिखरा था लेकिन उन्हें भाजपा के परंपरागत मतदाता, संघ परिवार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लाडली बहना योजना का फायदा हुआ है। महू विधानसभा क्षेत्र में भी लगभग 45000 लाडली बहना हैं। इस बार महिलाओं का भी अच्छा खासा मतदान हुआ है। इस कारण से भाजपा को इस योजना का लाभ मिलता दिख रहा है। निश्चित रूप से उषा दीदी नंबर 1 पर हैं लेकिन सवाल यह है कि उनकी जीत साफ-साफ होगी या तकनीकी। वैसे जीत जीत होती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह जीत किन समीकरणों या स्थितियों में मिली, लेकिन यदि उनको मिलने वाले मतों का जोड़ अंतर सिंह दरबार और रामकिशोर शुक्ला को मिलने वाले वोटो के जोड़ से कम हुआ, तो उन्हें मंत्री बनने में परेशानी आ सकती है। ऐसी स्थिति में आलाकमान के समक्ष स्पष्ट हो जाएगा कि उन्हें दो की लड़ाई का फायदा मिला है, अन्यथा भाजपा महू में हार भी सकती थी। जाहिर है ऐसे में उनके नंबर कम होंगे। इसके विपरीत यदि उन्हें दोनों को मिलने वाले मतों के जोड़ से अधिक वोट प्राप्त हुए तो फिर वे फ्रंट फुट पर आ जाएंगी। ऐसे में उन्हें मंत्री पद मिलना लगभग निश्चित हो जाएगा। यह तो हुआ भाजपा को बहुमत मिलने की स्थितियों का अनुमान। यदि कांग्रेस को बहुमत मिला और भाजपा को यहां जीत मिली तो फिर महू की राजनीति बदल जाएगी। अंतर सिंह दरबार को दिग्विजय सिंह जल्दी से जल्दी कांग्रेस में लाने की कोशिश करेंगे। अंतर सिंह दरबार प्रदेश में ऐसे निर्दलियों में शुमार होंगे जिन्होंने 50,000 प्लस मत प्राप्त किए। वर्तमान दौर के चुनावों में किसी भी निर्दलीय को यदि 40,000 से अधिक मत मिलते हैं तो यह माना जाता है कि वह बहुत अधिक दमदार नेता है। ऐसे में राजनीति में उसकी पुछपरख बढ़ जाती है। जाहिर है कांग्रेस सरकार आने की स्थिति में महू की राजनीति में अंतर सिंह दरबार सबसे बड़ा शक्ति केंद्र होंगे। कांग्रेस किसी भी स्थिति में लोकसभा चुनाव के पूर्व उन्हें अपनी पार्टी में शामिल कर लेगी। दूसरी तरफ यदि अंतर सिंह दरबार चुनाव जीतते हैं, जिसकी संभावना बिल्कुल भी कम नहीं है तो वो प्रदेश के सबसे चर्चित नेता होंगे। ऐसे में यदि किसी को भी बहुमत नहीं मिला तो उन्हें कांग्रेस या भाजपा में से कोई भी मंत्री पद देकर अपने साथ जोड़ लेगा। कुल मिला कर यह ऐसा चुनाव है जिसमें अंतर सिंह दरबार को सिर्फ मिलना ही मिलना है। वो हर परिस्थिति में फायदे में ही रहने वाले हैं।
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दूसरी तरफ रामकिशोर शुक्ला का वजन इस बात पर निर्भर करेगा कि वो हारने के बाद कितना सक्रिय रहते हैं ? उधर,उषा दीदी की हार या जीत से महू की राजनीति में कोई विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं ने दीदी का 3 वर्षीय मंत्री पद का कार्यकाल अच्छी तरह से देखा है। हां इतना जरूर है कि उषा दीदी की जीत के बाद उनके प्रबंधक और समर्थक असंतुष्ट भाजपाइयों पर कार्रवाई करने का दबाव बनाएंगे। बहरहाल,आने वाले 5 वर्षों में महू विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों में अंदरुनी खींचतान लगातार जारी रहने की आशंका है।