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शिव सरकार ने अर्थ व्यवस्था की कमर तोड़ी, अब मोहन सरकार 2 हजार करोड़ का लोन लेने की तैयारी में

प्रवीण कुमार खारीवाल

भोपाल। 163 विधानसभा सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश में भले ही बड़ी लकीर खेंच दी है, लेकिन खाली खजाने ने नई सरकार को पसोपेश में डाल दिया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने ढेरों आर्थिक चुनौतियां आ खड़ी हुई है। चुनाव जीतने के लिए शिवराज सरकार ने सरकारी खजाना खोल दिया था। अब खजाना खाली हो गया है। मध्यप्रदेश पर 3.31 लाख करोड़ का लोन है और अब केवल 15000 करोड़ की लिमिट बची है। नतीजा सरकार ने मध्यप्रदेश के 38 विभागों द्वारा संचालित योजनाओं पर रोक लगा दी हैं। इस बीच नई मोहन सरकार ने भी 2000 करोड़ के लोन लेने की प्रक्रिया आरंभ कर दी है।
अधिकारिक जानकारी के अनुसार सरकार ने प्रक्रिया के तहत इसके लिए सहमति पत्र आरबीआई को भेज दिया है। लोन की रकम 2000 करोड़ रुपए होगी। अधिकारियों ने कहा कि कर्ज लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और इसकी औपचारिकताएं कुछ दिनों में पूरी होने की संभावना है। वित्त विशेषज्ञों ने बताया कि राज्य की वित्तीय स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खर्चों को पूरा करने के लिए सरकार ने विधानसभा चुनाव के लिए लागू आदर्श आचार संहिता के दौरान 5000 करोड़ रुपए का कर्ज मांगा।
नई सरकार का यह पहला लोन होगा। वित्त विभाग ने लोन लेने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को विलिंगनेस लेटर लिखा है। लोन संभवत: इसी महीने के आखिर में लिया जाएगा। बताया जा रहा है कि प्रदेश सरकार पर महीने दर महीने कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। चालू वित्त वर्ष में सरकार 7 महीने (मई से नवंबर तक) में 25 हजार करोड़ रुपए का लोन ले चुकी है। आचार संहिता लगने से पूर्व सरकार ने सितम्बर में चार किस्तों में कुल 12 हजार करोड़ रुपए का लोन लिया था। यहां तक की विधानसभा चुनाव की आचार संहिता प्रभावशील रहते सरकार ने अक्टूबर व नवम्बर में तीन किस्तों में 5 हजार करोड़ का लोन लिया था। अब एक बार फिर सरकार 2 हजार करोड़ रुपए का लोन लेने की तैयारी शुरू कर दी है। इसे मिलाकर लोन की कुल राशि 27 हजार करोड़ रुपए हो जाएगी। प्रदेश सरकार पर 3 लाख 50 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज हो चुका है। बजट में कर्ज के लिए 3 लाख 85 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है। अधिकारियों ने कहा कि चुनाव के बीच या चुनाव के बाद कर्ज लेने पर कोई रोक नहीं है। पिछले वर्षों में ऋण आमतौर पर अंतिम तिमाही में लिया जाता था, लेकिन इस वर्ष इसे पूरे वर्ष के अंतराल में लिया गया। एक अधिकारी ने कहा कि वित्तीय वर्ष समाप्त होने में तीन महीने और बचे हैं, ऐसे में मप्र का कर्ज ओर बढ़ जाएगा। सूत्रों ने बताया कि साल के अंत तक राज्य पर कुल कर्ज 3.85 लाख करोड़ रुपए तक जा सकता है। प्रदेश सरकार पर चल रहे पुराने लोन का मूलधन भी ने कर्ज से चुकाया जाएगा।
मध्यप्रदेश शासन के वित्त विभाग ने 38 विभागों की योजनाओं पर रोक लगाते हुए, निर्देशित किया है कि सभी विभाग राजस्व संग्रहण के काम को प्राथमिकता पर रखें। जिन योजनाओं पर रोक लगाई गई है, उनमें नगरीय प्रशासन विभाग की महाकाल परिसर विकास योजना, मेट्रो ट्रेन और धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग द्वारा संचालित तीर्थ दर्शन योजना भी शामिल हैं। इसके अलावा अपंजीकृत निर्माण मजदूरों को अंत्येष्टि एवं अनुग्रह राशि देने की योजना भी समाप्त कर दी गई है।
गृह विभाग के अंतर्गत थानों के सुदृढ़ीकरण, परिवहन विभाग की ग्रामीण परिवहन नीति के क्रियान्वयन, खेल विभाग के खेलो इंडिया एमपी, सहकारिता विभाग की मुख्यमंत्री ऋण समाधान योजना, लोक निर्माण विभाग की विभागीय संपत्तियों के संधारण, स्कूल शिक्षा विभाग की नि:शुल्क पाठ्य सामग्री के प्रदाय, प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को लेपटाप प्रदाय, एनसीसी के विकास एवं सुदृढीकरण, जनजातीय कार्य विभाग टंट्या भील मंदिर के जीणोद्धार, उच्च शिक्षा विभाग की योजना, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के नए आईटी पार्क की स्थापना, विमानन विभाग की भू-अर्जन के लिए मुआवजा, ग्रामीण विकास विभाग की पीएम सडक़ योजना में निर्मित सडक़ों का नवीनीकरण और महिला एवं बाल विकास विभाग की आंगनवाड़ी केंद्रों के लिए भवन निर्माण सहित अन्य योजनाओं में व्यय बिना वित्त विभाग की अनुमति के नहीं किया जा सकेगा।

भाजपा : संकल्प से कितना भार

लाड़ली बहना : पात्र महिला को 1000 रुपए प्रतिमाह देकर शुरुआत। 1.30 करोड़ महिलाओं को हर माह 1250 रुपए। सालाना 19.500 करोड़ खर्च।
450 रुपए में गैस : उज्ज्वला व लाड़ली बहना योजना में हर माह सब्सिडी। हर माह 280 करोड़ का खर्च।
किसान सम्मान : यह राशि 4 हजार से बढ़ाकर 6 हजार की। 87 लाख किसानों को लाभ, खजाने पर 5220 करोड़ का भार।
बिजली सब्सिडी : अभी उपभोक्ताओं को रुपए 100 में 100 यूनिट बिजली, इस पर 6000 करोड़ सब्सिडी।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की वेतनवृद्धि : मानदेय में बढ़ोत्तरी से 35.04 करोड़ प्रति माह, सालाना 420 करोड़ का भार।

राजस्थान में भी 5.59 लाख करोड़ का कर्ज

मध्यप्रदेश की तरह राजस्थान में भी सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश के आर्थिक हालात हैं। दरअसल प्रदेश पर कर्ज अब 5.59 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है। भारतीय रिजर्व बैंक की तिमाही रिपोर्ट में भी एक बार फिर राजस्थान को कर्ज कम करने के लिए चेताया गया है। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार 2019 में प्रति व्यक्ति कर्ज 38.782 रुपए था, जो पिछले वित्तीय वर्ष तक बढक़र 70.848 रुपए हो गया। नई सरकार के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है कि वह इस कर्ज के बोझ से प्रदेश को कैसे बाहर निकाले। आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में व्यय के अनुपात में राजस्व नहीं बढ़ा है। इस पर भी राजस्व का 115 फीसदी वेतन और पेंशन में जा रहा है। यही स्थिति बनी रही तो प्रदेश का राजस्व घाटा लगातार बढ़ता रहेगा। इसके साथ ही मोटी रकम ऋण के ब्याज के रूप में चुकानी होगी।

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