सुरेश भीटे
मुम्बई।सुनहरे युग की सफलतम और लोकप्रिय अभिनेत्री निरूपा राय का जन्म दिवस है। सन १९३१ में एक साधारण गुजराती परिवार में हुआ था। पिताजी भागा भाई रेलवे के एक छोटे कर्मचारी थे।
निरूपा राय ने दाहोद में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। उस समय के रिवाज के अनुसार सन १९४१ में उनका बाल विवाह मुंबई निवासी सरकारी कर्मचारी किशोरचंद्र बलसारा से कर दिया गया। बलसारा फिल्मों के बहुत शौकीन थे।सुदर्शन व्यक्तित्व के मालिक होकर गुजराती फिल्मों में अभिनय करना चाहते थे शादी के बाद कुछ समय निरूपा राय अपने मायके में रही इस दौरान उनके पति ने उन्हे पत्र लिखा की अधिक से अधिक फिल्मे देखे। निरूपा राय ने अपने पति की बात मानकर सिनेमा हॉल में जाकर फिल्मे देखना शुरू किया और अपने पति को पत्र लिखा कि फिल्मों में नायक नायिका का खुल्लम खुल्ला प्रेम प्रदर्शन उन्हे अच्छा नहीं लगता हैं।उन्होंने पत्र में फिल्मों की कटु आलोचना कर डाली।फिल्मों की आलोचक ये लड़की जब अपने पति के घर मुंबई रहने आई , तो अक्सर अपने पति के साथ सिनेमा हॉल में फिल्म देखने जाने लगी। उन्ही दिनों फिल्मकार बी एम व्यास को गुजराती फिल्म” रूणक देवी “के लिए नए कलाकारों की आवश्यकता थी। इस आशय का विज्ञापन उन्होंने अखबारों में प्रकाशित कराया। निरूपा राय के पति ने भी आवेदन किया उन्हें इंटरव्यू के बुलाया गया जिसमे वो अपनी पत्नी को साथ लेकर गए। बी एम व्यास जी ने स्पष्ट रूप से पति देव किशोर बलसारा को बता दिया कि उनका व्यक्तित्व नायक के लिए ठीक नहीं है, लेकिन उनकी पत्नी को फिल्म की मुख्य भूमिका दी जा सकती हैं।इस तरह एक घरेलू महिला कांता उर्फ कोकिला को अभिनय का पहला अवसर मिला। उन्हें नया नाम दिया गया ” निरूपा राय”। फिल्म की शूटिंग शुरू होते होते उनकी ये भूमिका किसी अन्य लड़की को दे दी गई, बेचारी निरूपा राय को अपने परिवार के साथ समाज की पंचायत के आक्रोश का सामना करना पड़ा और सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगनी पड़ी
परंतु उनका भाग्य उन्हे जल्द ही अभिनेत्री बनाना चाहता था।उन्हे गुजराती फिल्म “गुण सुंदरी ” में मुख्य भूमिका के लिए अनुबंधित किया गया।इस फिल्म की सफलता के साथ ही वो स्टार बन गई उनकी पहली हिंदी फिल्म रही फिल्मकार ओ पी दत्ता की ” हमारी मंजिल “। इसके बाद उन्होंने सन १९५० की धार्मिक फिल्म ” हर हर महादेव” में देवी पार्वती का अभिनय किया।इस फ़िल्म में भगवान शंकर की भूमिका में थे ” त्रिलोक कपूर ” , ये फिल्म भी जबरदस्त सफल रही। अब निरुपा राय धार्मिक फिल्मों की मुख्य अभिनेत्री बन गई। सन १९५० से लेकर १९६१ तक वो धार्मिक और ऐतिहासिक फिल्मों में छाई रही।
सन १९५५ में सुबोध मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म ” मुनीम जी” में उन्होंने पहली बार नायक देव आनंद की मां की भूमिका निभाई। जिसके लिए उन्हें पुरस्कृत किया गया , लेकिन अगले ६ वर्षो तक उन्होंने मां की अन्य भूमिका स्वीकार नहीं की।
फिल्म ” छाया ,” में नायिका आशा पारेख की मां की भूमिका से पुनः चरित्र भूमिकाए करना शुरू किया और नायक नायिका की मां की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्रियों में पहले स्थान पर जा पहुंची।
आपकी कुछ यादगार फिल्मे हैं कश्मीर , सिनबाद द सेलर , दो बीघा जमीन, औलाद , गरम कोट, हीरा मोती , दो रोटी , तांगे वाली, तीन बत्ती चार रास्ता, मन चला , नाग पंचमी, सती नागकन्या, नाग चंपा , राम हनुमान युद्ध, जनम जनम के फेरे , बेदर्द जमाना क्या जाने, अमरसिंह राठौड़, रानी रूपमती , मुसाफिर , एक गांव की कहानी, दीवार आदि लंबी सूची है।सन २००४ में उनका स्वर्गवास हो गया।